बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है। जानिए बुद्ध पूर्णिमा के बारे में।

बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह बैसाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। यह एक अद्भुत संयोग है।

563 ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध का जन्म लुंबिनी, शाक्य राज्य (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में, कुशीनगर में उन्होने निर्वाण प्राप्त किया था। वर्तमान समय में कुशीनगर उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जनपद का एक कस्बा है। कुशीनगर का इतिहास में कुशनारा नाम से उल्लेख मिलता है। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।

माना जाता है की बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में लगभग 180 करोड़ से अधिक लोग है।यह यह त्यौहार  भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर,वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया,  श्रीलंका,  म्यांमार,  इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।  बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं।

क्या होता है बुद्ध पूर्णिमा में विशेष

 बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है।यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है जो विहारों में पूजा-अर्चना करने वे भी बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य  (architecture) अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) 6.1 मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है।

यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी। विहार के पूर्व हिस्से में एक  स्तूप  है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।

दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।

बौध कैसे मनाते हैं बुद्ध  पूर्णिमा

 इस दिन बौद्ध अनुयायी अपने घरों में दीपक जलते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं। वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है।

कहां कहां मनाई जाती है बुद्ध जयंती

भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान जैसे दुनिया के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है. भारत के बिहार राज्य में स्थित बोद्ध गया बुद्ध के अनुयायियों सहित हिंदुओं के लिये भी पवित्र धार्मिक स्थल है. श्रीलंका जैसे कुछ देशों में इस उस्तव को वेसाक उत्सव के रूप में मनाते हैं जो ‘वैशाख’ शब्द का ही अपभ्रंश माना जाता है।. बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने घरों में दिये जलाते हैं और फूलों से घर सजाते हैं. इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है.

हिंदू धर्म में बुद्ध पूर्णिमा की मान्यता

 
हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार के रूप में मान्य हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।धार्मिक मान्यता के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में भगवान बुद्ध अवतरित हुए थे और इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था।हालांकि दक्षिण भारत में बुद्ध को विष्णु का अवतार नहीं माना जाता है. दक्षिण भारतीय बलराम को विष्णु का आठवां अवतार तो श्री कृष्ण को 9वां अवतार मानते हैं. बौद्ध धर्म के अनुयायी भी भगवान बुद्ध के विष्णु के अवतार होने को नहीं मानते.

बुद्ध पूर्णिमा के दिन क्या और कैसे करें पूजा

– घर के मंदिर में विष्णु जी की दीपक जलाकर पूजा करें और घर को फूलों से सजाएं.

-घर के मुख्य द्वार पर हल्दी, रोली या कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं और गंगाजल छिड़कें.

-गरीबों को भोजन और कपड़े दान करें.

-रौशनी ढलने के बाद उगते चंद्रमा को जल अर्पित करें.

बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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